जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
कथा-कहानी
अंतरजाल पर हिंदी कहानियां व हिंदी साहित्य निशुल्क पढ़ें। कथा-कहानी के अंतर्गत यहां आप हिंदी कहानियां, कथाएं, लोक-कथाएं व लघु-कथाएं पढ़ पाएंगे। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद,रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मालियो टोल्स्टोय की कहानियां

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प्रहलाद - होलिका की कथा | पौराणिक कथाएं - भारत-दर्शन

होली को लेकर हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की कथा अत्यधिक प्रचलित है।
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पत्ता परिवर्तन  - डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

वह ताश की एक गड्डी हाथ में लिए घर के अंदर चुपचाप बैठा था कि बाहर दरवाज़े पर दस्तक हुई। उसने दरवाज़ा खोला तो देखा कि बाहर कुर्ता-पजामाधारी ताश का एक जाना-पहचाना पत्ता फड़फड़ा रहा था। उस ताश के पत्ते के पीछे बहुत सारे इंसान तख्ते लिए खड़े थे। उन तख्तों पर लिखा था, "यही है आपका इक्का, जो आपको हर खेल जितवाएगा।"
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महीने के आख़री दिन  - राकेश पांडे

महीने के आख़री दिन थे। मेरे लिए तो महीने का हर दिन एक सा होता है। कौन सी मुझे तनख़्वाह मिलती है?  आई'म नोट एनिवन'स सर्वेंट! (I'm not anyone's servant!) राइटर हूँ।खुद लिखता हूँ और उसी की कमाई ख़ाता हू। अफ़सोस सिर्फ़ इतना है, कमाई होती ही नही। मैने सुना है की ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी बूंरंगस (boomerangs) यूज़  करते हैं, शिकार के लिए, जो के फेंकने के बाद वापस आ जाता है। मेरी रचनायें उस बूंरंग को भी शर्मिंदा कर देंगी। इस रफ़्तार से वापस आती हैं।
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एक पत्र- अनाम के नाम - संजय भारद्वाज

[ ब्लू व्हेल के बाद ‘हाईस्कूल गेम' अपनी हिंसक वृत्ति को लेकर चर्चा में है। कुछ माह पहले इसी गेम की लत के शिकार एक नाबालिग ने गेम खेलने से टोकने पर अपनी माँ और बहन की नृशंस हत्या कर दी थी। उस घटना के बाद लेखक, 'संजय भारद्वाज' की प्रतिक्रिया, उस नाबालिग को लिखे एक पत्र के रूप में कागज़ पर उतरी। ]
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बुद्धू बेलोग - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड

बाली की लोक-कथा

बात काफी पुराने समय की है जब न टीवी थी ना रेडिओ, ना इंटरनेट ना फोन. इंडोनेशिया के द्वीप बाली में एक सीधा-साधा सा लड़का अपनी माँ के साथ रहा करता था। वो इतना सीधा था कि कोई न कोई बेवकूफी कर बैठता था और लोगों को लगता था कि ये तो बुद्धू है। पता नहीं उसका असली नाम क्या था लेकिन गाँव वाले उसे 'बेलोग' पुकारने लगे थे जिसका अर्थ बाली की भाषा में होता है- बुद्धू।
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अंगूर - कमल कुमार शर्मा

भाभी की तबीयत खराब है। रमेश आधा सेर अंगूर लाया है। भाभी की लड़की शीला सामने बैठी है, कोई चार बरस की होगी। अंगूर देखते ही लपकी और खाने शुरू करें दिए। रमेश ने झड़पकर कहा--"अरे, सब तू ही खा जाएगी या उनके लिए भी कुछ छोड़ेगी?  भाभी, तुम भी देख रही हो, यह नहीं कि हटा लो। "
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अधूरी कहानी - कुमारी राजरानी

मैं भला क्यों उसे इतना प्यार करती थी ? उसके नाममात्र से सारे शरीर में विचित्र कँपकँपी फैल जाती थी। उसकी प्रशंसा सुनते ही मेरी आँखें चमक जाती थीं। उसकी निन्दा सुनकर मेरा मन भारी हो उठता था। पर मैं उसके निन्दकों का खण्डन नहीं कर सकती थी, क्योंकि उसके पक्ष समर्थन के लिए मेरे पास पर्याप्त शब्द नहीं थे। बस, अपनी विवशता पर गुस्सा आता था। और यदि मेरे पास पर्याप्त शब्द होते भी, तो मैं किस नाते उसके निन्दकों का मुँह बन्द करती?  वह मेरा कौन था और मैं उसकी क्या लगती थी!
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सब समान - विक्रम कुमार जैन

एकबार की बात है। सूरज, हवा, पानी और किसान के बीच अचानक तनातनी हो गई। बात बड़ी नहीं थी, छोटी-सी थी कि उनमें बड़ा कौन् है? सूरज ने अपने को बड़ा बताया तो हवा ने अपने को, पानी और किसान भी पीछे न रहे। उन्होंने अपने बड़े होने का दावा किया। आखिर तिल का ताड़ बन गया। खूब बहस करने पर भी जब वे किसी नतीजे पर न पहुंचे तो चारों ने तय किया कि वे कल से कोई काम नहीं करेंगे। देखें, किसके बिना दुनिया का काम रुकता है।
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शराब - अनिल कटोच

"बाबू! कुछ पैसें दे दो।”
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होली बाद नमाज़  - क़ैस जौनपुरी | कहानी

अहद एक मुसलमान है। मुसलमान इसिलए क्योंकि वो एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुआ है। हाँ, ये बात अलग है कि 'वो' कभी इस बात पर जोर नहीं देता है कि वो मुसलमान है। वो मुसलमान है तो है। क्या फर्क पड़ता है? और क्या जरूरत है ढ़िंढ़ोरा पीटने की? वो कभी इन बातों पर गौर नहीं करता है। लेकिन उसके गौर न करने से क्या होता है? लोग तो हैं? और लोग तो गौर करते हैं और लोग अहद की हरकतों पर भी गौर करते हैं।
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बड़ा और छोटा | बोधकथा - कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar'

विशाल वटवृक्ष ने अपनी छाया में इधर-उधर फैले, कुछ छोटे वृक्षों से अभिमान के साथ कहा--"मैं कितना विराट् हूँ और तुम कितने क्षुद्र! मैं अपनी शीतल छाया में सदा तुम्हें आश्रय देता हूँ।"
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चिंगारी - जूही विजय

दिन इतवार का था।
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दिल की रानी - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

जिन वीर तुर्कों के प्रखर प्रताप से ईसाई-दुनिया काँप रही थी, उन्हीं का रक्त आज कुस्तुन्तुनिया की गलियों में बह रहा है। वही कुस्तुन्तुनिया जो सौ साल पहले तुर्कों के आतंक से आहत हो रहा था, आज उनके गर्म रक्त से अपना कलेजा ठंडा कर रहा है। और तुर्की सेनापति एक लाख सिपाहियों के साथ तैमूरी तेज के सामने अपनी किस्मत का फैसला सुनने के लिये खड़ा है।
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